Friday 4 January 2013

छोड़ दो ए माओं तुम जनना बेटियां

छोड़ दो ए माओं तुम जनना बेटियां
निश्छल, निष्पाप सी, जीवन की उम्मीद देती बेटियां
तुमने दिया वरदान उसे जो, बन रहा अभिशाप है
जननी का अधिकार पाकर, धो रही वो पाप हैं
आंचल में जो दूध दिया है, भेड़ियों की वह भूख बना है
इन दरिंदों के वास्ते तुम, क्यूं जनोगी बेटियां?
छोड़ दो माओं तुम जनना बेटियां
वंश चलाने की खातिर, कोख में मारते हैं बेटियां
हवस की अग्नि में हर रोज, लीलते हैं बेटियां
कभी दहेज, कभी झूठी शान पे, बली चढ़ाते ये बेटियां
दुनिया की हर गलतियों पर दोषी ठहराते बेटियां
बहुत हुआ अब और नहीं, चला लो तुम ये जीवन बिन बेटियां


2 comments:

  1. अच्छा लिखती हैं आप.लगातार लिखती रहें,और भी अच्छी रचनायें निकल कर सामने आएँगी.

    ReplyDelete