Friday 3 February 2012

आज के युग में ऐसी अफरा-तफरी क्यों है

आज के युग में ऐसी अफरा-तफरी क्यूं है,
हर चेहरे पर शिकन, आंखों में नमी क्यूं हैं।
कहते हैं नारी शक्ति है, नारी लक्ष्मी है,
पर आज भी वो नर के चरणों की दासी क्यूं है।।

लाख कहें हम नारी मुक्ति का जमाना है,
फिर वो पुरुष दंभ की अधिकारिणी क्यूं है।
मरती हैं लाखों बेटियां आज भी दहेज की बेदी पर,
शिष्टाचार, लज्जा, संकोच नारी का है गहना,
व्याभिचार, उदंडता को पुरुषों ने पहना।।

पूजते हैं मंदिर में हम देवी और दुर्गा को,
डसते हैं घर की बेटी और बहू को।
कब बदलेगा यह समाज, कब आएगी क्रांति,
कब होगी नारी नर के जीवन की अधिकारिणी।।

जिस दिन मुक्त हो जाएगी नारी इस पुरुष दंभ के अहंकार से,
सजेगी धरती नारी के सौंदर्य अलंकार से।।

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