बहुत याद आते है वो बचपन के दिन,
मुझे रह-रह कर सताते है वो बचपन के दिन।
कितने अच्छे दिन थे वो, कितने सच्चे दिन,
ना पाने की चिंता ना खोने का गम।।
कितने अच्छे दिन थे वो, कितने सच्चे दिन,
ना पाने की चिंता ना खोने का गम।।
मस्ती और शरारतों में गुजरते दिन थे वो,
नानी और दादी के किस्सों में डूबी रातें।
याद आते है मुझे वो बरबस, वो छोटे-छोटें पल,
भाई-बहनों संग कूदतें-फुदकतें ,लड़तें-झगड़ते पल।।
नानी और दादी के किस्सों में डूबी रातें।
याद आते है मुझे वो बरबस, वो छोटे-छोटें पल,
भाई-बहनों संग कूदतें-फुदकतें ,लड़तें-झगड़ते पल।।
वो स्कूल के दिन, वो दोस्तों का साथ,
वो मास्टर जी की छडी को देखकर ही रोना,
वो उनका प्यार से झूठी डांट लगाना और मेरी पीठ थपथपाना।।
वो मास्टर जी की छडी को देखकर ही रोना,
वो उनका प्यार से झूठी डांट लगाना और मेरी पीठ थपथपाना।।
खुले मैदानों में, वो दोस्तों संग दौड़ना,
वो गिरना,वो लड़ना,वो उठ के भागना।
बारिश के मौसम में छत पर घंटों भींगना,
पानी की धारों में भाइयों संग मछली पकड़ना।।
वो गिरना,वो लड़ना,वो उठ के भागना।
बारिश के मौसम में छत पर घंटों भींगना,
पानी की धारों में भाइयों संग मछली पकड़ना।।
याद आतें है वो सारे पल,अंकित है जो मेरे मानस पटल पर,
बहुत तड़पाते है वो पल,जो मेरे ह्रदय में सिमटे है।।
बहुत तड़पाते है वो पल,जो मेरे ह्रदय में सिमटे है।।
गर्मी की छुट्टियों में जब नानी के घर जातें थे,
तपती दुपहरी में अमराई से कच्चे आम चुराते थें।
नाना की डांट और नानी की दुलार,बसी है मेरी स्मृतियों में,
एक-एक पल मेरे बचपन के, घूमतें है मेरे जेहन में।।
तपती दुपहरी में अमराई से कच्चे आम चुराते थें।
नाना की डांट और नानी की दुलार,बसी है मेरी स्मृतियों में,
एक-एक पल मेरे बचपन के, घूमतें है मेरे जेहन में।।
वो कोर्स की किताबों में कामिक्स छिपाकर पढ़ना,
वो कागज की नकली सिगरेट बनाकर धुंआ उड़ाना।
पापा की डांट की डर से घंटों कोने में दुबकना,
फिर माँ का छिपाकर प्यार से खाना खिलाना।।
वो कागज की नकली सिगरेट बनाकर धुंआ उड़ाना।
पापा की डांट की डर से घंटों कोने में दुबकना,
फिर माँ का छिपाकर प्यार से खाना खिलाना।।
कहाँ गए वो सारे पल,
कहां गए वो दिन।
क्यूं नहीं लौट के आ जाते वापस
वो बचपन के दिन।।
कहां गए वो दिन।
क्यूं नहीं लौट के आ जाते वापस
वो बचपन के दिन।।