Monday 14 November 2011

याद तेरी आए तो क्या करें...

याद तेरी आए तो क्या करें,
दिल तुझे बुलाए तो क्या करें।
दिल की गहराइयों में बसा है तू,
सांसों की पुरवाइयों में बसा है तू,
जब दिल तन्हा आंसू बहाए तो क्या करें।।

जब धड़कने शोर मचाए तो क्या करें,
तू है, तो मेरा वजूद है, तू है तो मेरे हर तरफ नूर है,
ये बातें तुझे समझ न आए तो क्या करें,
तेरा गम मुझे रुलाए तो क्या करें।।

मैं तेरी हूं- तू मेरा है, मैं तुझसे हूं- तू मुझसे है,
दिल के तार ये गीत गाएं तो क्या करें,
सुबह-शाम तेरी याद सताए तो क्या करें।

कब समझेगा तू मेरे इस दर्द को,
कब बज्म में तेरे मेरा भी कलाम होगा।
जब तू ही बेदर्द बन जाए तो क्या करें,
जब चिराग-ए-इश्क ही बुझ जाए तो क्या करें।।

1 comment:

  1. जब किसी चीज को शिद्दत से महसूस किया जाता है तो ज़हन से ऐसे ही शब्द निकलते हैं. शब्द दिल से कलम तक पहुंचते हैं और फिर कागज पर छप जाते हैं. आपकी इतनी अच्छी कविता के लिए आपका शुक्रिया.

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