Thursday 5 January 2012

रस्म-ए-उल्फत निभाएं भी तो कैसे

रस्म-ए-उल्फत निभाएं भी तो कैसे,
तेरी चाहत के लायक नजर आए भी तो कैसे,

तेरे पास है एक शीशे सा दिल, मैं रास्ते का पत्थर हूं,
तू दरिया है मुहब्बत का, मैं जलता हुआ अंगारा हूं।
तेरा प्यार से सज़दे के काबिल मैं मयकदों की रानी हूं,
तू आफताब, मैं जर्रा हूं, तू तरूवर मैं तेरी छाया हूं।

तेरे लिए तो मैं ना बनी, तू खुदा की नेयमत है,
मेरे लिए तू क्यूं है परेशान, मैं चरण रज तेरे पैरों की।
ये दुनिया है पाषाण ह्रदय, तू क्यों आस लगाता है,
मेरे लिए तू गम न कर, तुझे कसम उस दाता की।

मैं जलती हुई चिता हूं, खाक में मिल जाऊंगी,
तू आसमां में चमकेगा, मैं तुझे देख मुस्कुराऊंगी।।


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