Friday, 4 January 2013

छोड़ दो ए माओं तुम जनना बेटियां

छोड़ दो ए माओं तुम जनना बेटियां
निश्छल, निष्पाप सी, जीवन की उम्मीद देती बेटियां
तुमने दिया वरदान उसे जो, बन रहा अभिशाप है
जननी का अधिकार पाकर, धो रही वो पाप हैं
आंचल में जो दूध दिया है, भेड़ियों की वह भूख बना है
इन दरिंदों के वास्ते तुम, क्यूं जनोगी बेटियां?
छोड़ दो माओं तुम जनना बेटियां
वंश चलाने की खातिर, कोख में मारते हैं बेटियां
हवस की अग्नि में हर रोज, लीलते हैं बेटियां
कभी दहेज, कभी झूठी शान पे, बली चढ़ाते ये बेटियां
दुनिया की हर गलतियों पर दोषी ठहराते बेटियां
बहुत हुआ अब और नहीं, चला लो तुम ये जीवन बिन बेटियां


Sunday, 25 March 2012

वो बचपन के दिन


बहुत याद आते है वो बचपन के दिन,
मुझे रह-रह कर सताते है वो बचपन के दिन
कितने अच्छे दिन थे वो, कितने सच्चे दिन,
ना पाने की चिंता ना खोने का गम।।

मस्ती और शरारतों में गुजरते दिन थे वो,
नानी और दादी के किस्सों में डूबी रातें
याद आते है मुझे वो बरबस, वो छोटे-छोटें पल,
भाई-बहनों संग कूदतें-फुदकतें ,लड़तें-झगड़ते पल।।

वो स्कूल के दिन, वो दोस्तों का साथ,
वो मास्टर जी की छडी को देखकर ही रोना,
वो उनका प्यार से झूठी डांट लगाना और मेरी पीठ थपथपाना।। 

खुले मैदानों में, वो दोस्तों संग दौड़ना,
वो गिरना,वो लड़ना,वो उठ के भागना
बारिश के मौसम में छत पर घंटों भींगना,
पानी की धारों में भाइयों संग मछली पकड़ना।।

याद आतें है वो सारे पल,अंकित है जो मेरे मानस पटल पर,
बहुत तड़पाते है वो पल,जो मेरे ह्रदय में सिमटे है।।

गर्मी की छुट्टियों में जब नानी के घर जातें थे,
तपती दुपहरी में अमराई से कच्चे आम चुराते थें
नाना की डांट और नानी की दुलार,बसी है मेरी स्मृतियों में,
एक-एक पल मेरे बचपन के, घूमतें है मेरे जेहन में।।

वो कोर्स की किताबों में कामिक्स छिपाकर पढ़ना,
वो कागज की नकली सिगरेट बनाकर धुंआ उड़ाना
पापा की डांट की डर से घंटों कोने में दुबकना,
फिर माँ का छिपाकर प्यार से खाना खिलाना।।

कहाँ गए वो सारे पल,
कहां गए वो दिन।
क्यूं नहीं लौट के आ जाते वापस
वो बचपन के दिन।।

Friday, 3 February 2012

आज के युग में ऐसी अफरा-तफरी क्यों है

आज के युग में ऐसी अफरा-तफरी क्यूं है,
हर चेहरे पर शिकन, आंखों में नमी क्यूं हैं।
कहते हैं नारी शक्ति है, नारी लक्ष्मी है,
पर आज भी वो नर के चरणों की दासी क्यूं है।।

लाख कहें हम नारी मुक्ति का जमाना है,
फिर वो पुरुष दंभ की अधिकारिणी क्यूं है।
मरती हैं लाखों बेटियां आज भी दहेज की बेदी पर,
शिष्टाचार, लज्जा, संकोच नारी का है गहना,
व्याभिचार, उदंडता को पुरुषों ने पहना।।

पूजते हैं मंदिर में हम देवी और दुर्गा को,
डसते हैं घर की बेटी और बहू को।
कब बदलेगा यह समाज, कब आएगी क्रांति,
कब होगी नारी नर के जीवन की अधिकारिणी।।

जिस दिन मुक्त हो जाएगी नारी इस पुरुष दंभ के अहंकार से,
सजेगी धरती नारी के सौंदर्य अलंकार से।।

Thursday, 19 January 2012

मां का प्यार है ऐसा जग में, जिसका कोई मोल नहीं

आंखों में है नीर और ममता अन्तः स्थल में, 
आंचल में है दूध और करुणा मन में तेरे।
मां तू कितनी अच्छी है, मां तु कितनी सच्ची है,
तुझसे ये जीवन है और तु जीने का आधार है।

जीवन की कड़ी धूप में, तेरा प्यार है शीतल छाया,
औरों को जीवन दे खुश होकर, यही हमको है सिखलाता।
कोख में अपने नौ माह तक, तु हमको जीती है,
खुद गीले में सोती है, और हमें सूखे में सुलाती है।

मां का ह्रदय पर्वत सा विशाल, प्यार विस्तृत गगन सा,
कोमल, नवल, धवल, श्वेत-स्वच्छ, प्रकाश सा मां का आंचल।
जब कभी निराशा के बादल, मन में छाते हैं,
तु इंद्रधनुष बन के हमारे मन को प्रफुल्लित करती है।

तेरा प्यार है ऐसा जग में, जिस का नहीं है मोल कोई,
शत्-शत् नमन तुझे ऐ मां, तुझ पर है ये ब्रह्मांड टिका।।

Friday, 6 January 2012

जज्बातों की राख पर,सपने जवां नहीं होते

जज्बातों की राख पर,सपने जवां नहीं होते,
दम तोड़ देती है हसरते और किस्से बयान नहीं होते.
कहते है सूखें खेतो पर जब बारिश की बूँदें गिरती है,
तप्त ह्रदय पुलकित होते है और बीजों में जीवन आता है|
हरियाली की चादर ओढें ,धरती अंगडाई लेती है,
शाखों पर पंछी गाते है और चंचल चितवन शरमाती है|

कुछ ऐसा ही है जीवन तेरा  मेरा,
तू समझ ले राज़ ये जीवन का|
जब निराश निस्तेज आँखों में,इच्छाएं अंगडाई लेती है,
जब सुप्त-आकाश ,ह्रदय में,कामनाएं जन्म लेती है,
तब जीवन नयी उमंगें लेता है,
जिन्दगी हँसने लगती है|

जब निशब्द,विस्तृत व्योम से,दामिनी टकराती है,
तब उठ आ चल आशाओं को पंख दे,नयी उड़ानें भरने को,
एकाकार कर ले क्षितिज ये सारा,जीवन के रंग भरने को|

Thursday, 5 January 2012

रस्म-ए-उल्फत निभाएं भी तो कैसे

रस्म-ए-उल्फत निभाएं भी तो कैसे,
तेरी चाहत के लायक नजर आए भी तो कैसे,

तेरे पास है एक शीशे सा दिल, मैं रास्ते का पत्थर हूं,
तू दरिया है मुहब्बत का, मैं जलता हुआ अंगारा हूं।
तेरा प्यार से सज़दे के काबिल मैं मयकदों की रानी हूं,
तू आफताब, मैं जर्रा हूं, तू तरूवर मैं तेरी छाया हूं।

तेरे लिए तो मैं ना बनी, तू खुदा की नेयमत है,
मेरे लिए तू क्यूं है परेशान, मैं चरण रज तेरे पैरों की।
ये दुनिया है पाषाण ह्रदय, तू क्यों आस लगाता है,
मेरे लिए तू गम न कर, तुझे कसम उस दाता की।

मैं जलती हुई चिता हूं, खाक में मिल जाऊंगी,
तू आसमां में चमकेगा, मैं तुझे देख मुस्कुराऊंगी।।


Tuesday, 3 January 2012

कुछ नग्में जिंदगी के, आ चल गुनगुना लें

कुछ नग्में जिंदगी के, आ चल गुनगुना लें,
कुछ किस्से दोस्ती के, आ चल सुना ले,
अपने दामन में समेंटे दुनिया की खुशी,
चल भूखे बच्चों को बांटे, थोड़ी सी हंसी।

दुनिया के फिक्र-ओ-गम को हवा में उड़ा,
आ चल कुछ दूर, दर्द को ठोकर से हटा,
अपनी तन्हाईयों को जीने का सबब तू बना,
दुनिया के दर्द को बांट और हर पल तू मुस्कुरा।
जी ऐसे कि आंखों में तेरे नूर हो,
हर तरफ तेरा जलवा, तेरा ही शोर हो।

जिंदगी की साख पर तू, फूल आशा के खिला,
हर तरफ खुशियां चहके, ऐसा एक जहां तू बना,
तमन्नाओं की आग में, मत जिंदगी अपनी जला,
इस जहां से रुख्सती से पहले, एक मंत्र जिंदगी का तू सबको सिखा।।