Wednesday 7 December 2011

'निगाहों से जो बयां है, जुबां से छुपाए कैसे'

निगाहों से जो बयां है, उसे जुबां से छुपाएं कैसे,
दिल के जख्मों को दुनिया की नजरों से बचाएं कैसे।
दिल के टूटने की आवाज नहीं होती,
ये वो सरगम है, जिस की कोई साज नहीं होती।।

दिल जो तड़पे तो लेकर इसे जाएं कहां,
इसके टुकड़ों को सहेज कर छुपाएं कहां।
जब-जब शाम ढ़लेगी, रातें नश्तर चुभाएगी,
तेरी याद में तड़पूंगी, करवटें मुझे जलाएगी।।

होठों पर झूठी हंसी से, राज दिल के छुपते नहीं,
झूठ-मूठ के किस्सों से, नमीं आंखों की बचती नहीं।
कतरा-ए-दिल करे शोर तो भुलाएं कैसे,
बेखुदी में दिल को रहे ना होश, तो समझाएं कैसे।।



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