Sunday, 18 December 2011

यही एक अभिलाषा है।

कुछ बात है तुझ में, जो मुझको तेरी ओर लेकर आती है,
तू पर्वत सा शीश उठाए है, मैं सरिता सी बहती रहती हूं।
तेरे चेहरे का वो प्रखर तेज, मेरे दग्ध ह्रदय में आभाषित है,
तेरी वाणी का वो मधुर स्वर, मेरे रोम-रोम में झंकृत है।।

कमल नयन सी आंखे तेरी, मन में राग जगाती है,
नीलकंठ सी ग्रीवा तेरी, सुप्त कामनाएं जगाती है।
तू राग है, मैं तेरी रागिनी, तू चांद है, मैं तेरी चांदनी,
तू उज्जवल, धवल, भोर की बेला,
मैं तपती दोपहरी की धूप हूं।।

तेरे आ जाने से जीवन सर्दी सी मीठी धूप बना,
तेरे छूने से तन-मन में जागी एक हूक सी है।
तू सावन की पहली बौछारे,
मैं बारिश की उफनती धारा हूं।।

तू अनन्त आकाश, और मैं एक नन्हा सा तारा हूं,
किया है मैने तुझ-को, खुद-को अर्पण।
तू ही जीने का सहारा है,
साथ तेरा यूं बना रहे जीवन भर,
यही एक अभिलाषा है।।

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