Friday 30 December 2011

'कल रात ख्वाब में देखा तुझे अपने पास'

कल रात ख्वाब में देखा तुझे अपने पास,
माथे पर स्पर्श तेरे अधरों का,
कांधों को थामे तेरी बाहें,
जगाती हैं अहसास तेरा,
मेरे अंदर विचित्र सा,
तेरे साथ का, तेरे भरोसे का।

ऐसा लगता है, तू औऱ मैं,
जैसे माला में गुहे गए मोतियों की तरह,
बंध गए एक धागे में, एक बंधन में।

क्या कहूं तुझसे? कैसे कहूं?
जी करता है, दिल का एक-एक जख्म दिखाऊं तुझे,
पर नहीं चाहती इस अभिसार बेला में, कोई अवसाद का क्षण,
नहीं खोना चाहती इन मधुर रसिक पलों को,
पाकर तुझे विश्वास नहीं होता अपनी नियति पर,
निःशब्द सी रह जाती हूं,
 एक अंजाना भय, तुझे खोने का डर
घेर लेता है भूरे बादलों की तरह।

"तेरी जुदाई का तसव्वर भी भला कैसे करूं,
हाथों की लकीरों में पाया है तुझे"
गूंज उठता है किसी शायर का कलाम मेरे मन में,
तू मेरा मान है, अभिमान है,
मेरी सांस की हर आगम का कारण है,
मेरे ह्रदय के हर स्पंदन में स्पंदित,
मन के हर कोने में पूजित,
कैसे जा सकते हो मुझसे दूर कभी,
मेरे प्रियवर! 

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