Sunday 4 December 2011

"चलते-चलते यूं ही राहों में, ना जाने तुम कैसे मिल गए"

चलते-चलते यूं ही राहों में, ना जाने तुम कैसे मिल गए,
जैसे दिल की खामोशी में हलचल सी हो गई।
वो तेरा मिलना, जैसे चुपके से किसी ने कानों में कुछ कहा हो,
वो तेरी बातें, जैसे पहली बारिश की बूंदे गिरी हो जमीं पर,
हंसी तुम्हारी जैसे उन्मुक्त गगन में पाखी उड़ते हो कई।।

वो मेरा रूठना, वो तेरा मनाना, बच्चों की छुपा-छुपी जैसे,
हाथ पकड़ कर दरिया से साहिल पर तुम ले गए।
डूबती सांसों से अपनी सांस तुमने जोड़ दी,
रात के अन्धकार में रोशनी की किरण,
जैसे, कोह-ए-तूर से उतरी हो, और मुझ पर फैली।।

तुम हमराह हुए, हमराज हुए, हमदम हुए,
ए मेरी जिंदगी की किश्ती के नाखुदा।।

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