Sunday, 18 December 2011

आया एक दिन तू मन के द्वार

चेहरे पर लिए स्निग्ध मुस्कान,
आंखों में निश्चल प्यार।
आया एक दिन तू, मन के द्वार,
खुशियां समेटे अपने दामन में,
संताप हरण को।।

आंखे कितनी निष्पाप, भाव मृदु
छू गया मुझे तेरा स्पर्श।
लगा अबोध शिशु,

हुआ प्रकट, अंतस के अंधकार हरण को,
तुझे बोध नहीं है, मेरे अंतर में फैले अंधियारे का,
धूमिल न होने देना, कर रही थी प्रतीक्षा।
एक उजास की, सदियों से।।

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